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Kabir Ke Shabd |
कबीर के शब्द
नर धोखे-२लुटगे आगी अंत घड़ी।
बचपन मे रही नादानी, फिर आई मस्त जवानी।
त्रिया समझी स्वर्ग निशानी, लगी अमृत की झड़ी।।
जवानी में पाप कमाए, वे जाते नहीं बताए।
के मैं न्यू जानू था हाय, मेरे सिर पे मौत खड़ी।।
भक्ति कर लूंगा कुछ दिन में, धंधा खत्म करूँ जा वन में।
मैं तो न्यू जानूँ था मन मे, उम्र मेरी बहुत पड़ी।।
फेर आया बुढापा बैरी, परिवार में ममता गहरी।
पोता ब्याहवन की इच्छा रह री, हेली करूँगा खड़ी।।
चलते का यही सन्देशा, हर की भक्ति करो हमेशा।
शुभ कारज में दियो पैसा, धेला हो चाहे धड़ी।।
मालिक के घर ये कायदा, चले गए बाप ओर दादा।
भानीनाथ जीवे न ज्यादा, टूटी उम्र लड़ी।।