Kabir Ke Shabd |
कबीर के शब्द
ना जाने तेरा साहिब कैसा है।।
ना जाने तेरा साहिब कैसा है।।
मस्जिद भीतर मुल्ला पुकारे,क्या साहिब तेरा बहरा है।
चींटी के पग नेवर बाजै, सो भी साहिब सुनता है।।
पंडित हो के आसन मारै, लम्बी माला जपता है।
अंदर तेरे कपट कतरनी, सो भी साहिब लखता है।।
अंदर तेरे कपट कतरनी, सो भी साहिब लखता है।।
ऊँचा नीचा महल बनाया, गहरी नींव जमाता है।
चलने का मंसूबा नाही, रहने को मन करता है।।
चलने का मंसूबा नाही, रहने को मन करता है।।
कोड़ी कोड़ी माया जोड़ी, गाड़ भूमि में धरता है।
जो लेना हो सो ही लेले,पापी बह बह मरता है।।
जो लेना हो सो ही लेले,पापी बह बह मरता है।।
सतवंती को गजी नहीं मिले, वैश्या पहरे खासा है।
सो घर साधु भीख न पावै,भड़वा खाए बताशा है।।
हीरा पाया परख न जाने, कोड़ी परख न करता है।
कह कबीर सुनो भई साधो, हरि जैसे को तैसा है।।