Kabir Ke Shabd |
कबीर के शब्द
मुसाफिर सोवै क्यूं पांव पसार, मंजिल तेरी दूर पड़ी।
रस्ता है बड़ा अति टेढ़ा,पग पग पर तेग अड़ी।
बीच बजार सरे आम लूट लें, ये ठगनी पांच खड़ी।।
काम क्रोध मद लोभ मोह की,चलती नदियां भरी भरी।
आशा तृष्णा भँवर बीच में, कैसे पार तरी।।
रोवै चिल्लावै और पछतावै, सोचै घड़ी घड़ी।
ओषध बूटी कुछ ना लागै, कैसी विपद पड़ी।।
सतगुरु ताराचंद कह समझ कंवर,पीले नाम की जड़ी।
राधास्वामी जहाज चढ़ चालो, सर सर जहाज चली।।