Kabir Ke Shabd |
कबीर के शब्द
म्हारै गुरां के चरण की रे धूल, मस्तक लाग रही जी।
जब या धूल चढ़ी मस्तक पे जी, हुई दुविधा दूर।
इंगला पिंगला ध्यान धरत है जी, सुरति पहुंची दूर।
यो संसार विघ्न की घाटी जी, निकसै कोए विरला ए सूर।
प्रेम भक्ति गुरु रामानन्द लाए जी, करी कबीरा भरपूर।