Kabir Ke Shabd |
कबीर के शब्द
मेरे सिर पे मटकी पाप की, मैं ढूंढूं गुरू रविदासा ।
मैं राणा की लाडली।।
मनै मन्दिर मस्जिद ढूंढ लिया हे,
मुझे कहीं न मिले रविदास।। मैं।।
मुझे कहीं न मिले रविदास।। मैं।।
मनै सागर पर्वत ढूंढ लिया हे,
मुझे वहां ना मिले रविदास।।
मुझे वहां ना मिले रविदास।।
मैं सत्संग मण्डल पहुंच गई हे,
मैं बन गई सन्तों की दास ।।
मैं बन गई सन्तों की दास ।।
मनै घट अपने मे टोह लिया हे,
मुझे वहीँ मिले रविदास।।
मुझे वहीँ मिले रविदास।।