Kabir Ke Shabd |
कबीर के शब्द
मेरे सद्गुरु काट जंजीर, जिवडा दुःखी हुआ।।
एक हाथ माया ने जकड़ा, एक हाथ सद्गुरु ने पकड़ा।
नाचै अधम शरीर।।
एक हाथ माया ने जकड़ा, एक हाथ सद्गुरु ने पकड़ा।
नाचै अधम शरीर।।
कभी मन जाए ध्यान योग में,
कभी वो जाए विषय भोग में।
एक लक्ष्य दो तीर।।
कभी वो जाए विषय भोग में।
एक लक्ष्य दो तीर।।
जल थल दुनिया बहती धारा,
गहरा पानी दूर किनारा।
सोचै खड़ा राहगीर।।
गहरा पानी दूर किनारा।
सोचै खड़ा राहगीर।।
जब तूं आए कुछ बन नहीं पाए,
जब तूँ जाए तो विरह सताए।
ज्यूँ मछली बिन नीर।।
जब तूँ जाए तो विरह सताए।
ज्यूँ मछली बिन नीर।।