Kabir Ke Shabd |
कबीर के शब्द
मेरे मनवा राजा, जायला कौनसी घाटी।
आगै भरम की टाटी।।
कौन दिशा से आई मन पवना,कौन दिशा जासी।
कौन दिशा ने भजन उभरिया, कौन दिशा रम जासी।।
अगम दिशा से आई पवना,पछम दिशा नै जासी।
बंकनाल से भजन उभरिया, ररंकार में रम जासी।।
बंकनाल से भजन उभरिया, ररंकार में रम जासी।।
ऊंची नींची सूरत करै नै, चन्दा जोतरे वासी।
तत्व नाम को खेत बुडले, जाग्या कर दिन राती।।
तत्व नाम को खेत बुडले, जाग्या कर दिन राती।।
बारह आंगल सीमता, सोलह आंगल फांती।
सवा हाथ रो भगवां चोलो, त्रिवेणी के घाटी।।
सवा हाथ रो भगवां चोलो, त्रिवेणी के घाटी।।
दीपक में एक दीपक दरसै, दीपक में एक झाँई।
झाँई में परछाई दरसें,वहां बसै मेरा साँई।।
झाँई में परछाई दरसें,वहां बसै मेरा साँई।।
शरण मछँदर सुनो जति गोरख, जात हमारी चेली।
तेल-२ सो काढ़ लिया,खल पशुवां ने मेली।।
तेल-२ सो काढ़ लिया,खल पशुवां ने मेली।।