Kabir Ke Shabd |
कबीर के शब्द
मेरा नाम कबीरा रे साधो, जगत गुरु का हीरा जी।
तीन लोक में मादा मेरा, त्रिकुटी है अस्थाना।
पानी पवन ओर मेहर सुमरनी, इस दिन रचा जहाना।
गगन मण्डल में आसन मेरा, मदनी है अस्थाना।
ब्रह्म वेद हमसे ही आया, म्हारा सकल जहाना।।
अनहद महल गगनगढ़ उपजै, बाजै सोहं तारा।
गुप्त भेद वाही को कहिये, वो है नाथ हमारा।।
भव बन्धन से लाउं धुलवाई, निर्मल करो शरीरा।
सुरनर मुनि कोए पार न पाया, पाया सन्त कबीरा।।
वेद कितेब कोए पार न पाया, ऐसी मति का धीरा।
कह कबीर सुनो भई साधो, दोनों दीन के पीरा।।