Kabir Ke Shabd |
कबीर के शब्द
मतवाली मीरा सत्संग करती डोलै।।
हाथ में लेके इकतारा वा कृष्ण कृष्ण बोलै।।
छोड़ दिया उसने खाना पीना, छोड़ दिया घर बार।
भूल गई वा जग का झमेला, भूली घर परिवार।।
कृष्ण जी के भजन बनावै, झूम झूम के डोलै।।
भूल गई वा जग का झमेला, भूली घर परिवार।।
कृष्ण जी के भजन बनावै, झूम झूम के डोलै।।
कृष्ण जी के भजन सुनावै, झूम झूम के नाचीं।
गुरू बना लिए रविदास हे उसके संग में राजी।
जात पात का भेद न समझें, वा लाखन में डोलै।।
दर दर डोलै वा भटकती, मिला ना कृष्ण प्यारा।
भक्ति का यो रोग जगत में, सब रोगों से न्यारा।
जिसके भी यो रोग लगै, यो तुरत कालजा छोलै।।
शाम सुंदर शर्मा उसके सै, शाम लग्न पावन की।
शाम विरह में फिरै भटकती, दर्श शाम पावन की।
जो भी उसके बोल सुनै सै, अंदर के पट खोलै।।