Kabir Ke Shabd |
कबीर के शब्द
मैं तो रमतां जोगी राम, मेरा क्या दुनिया से काम।।
हाड़ मांस की बनी पुतलियां, ऊपर चढ़ रहा चाम।
देख-२ सब लोक रिझावें, मेरो मन उपराम।।
माल खजाने बाग बगीचे, सुंदर महल मुकाम
एक पल में सब ही छूटें, संग चले ना दाम।।
एक पल में सब ही छूटें, संग चले ना दाम।।
मातपिता और मित्र प्यारे, भाई बन्धु सुत वाम।
स्वार्थ के सब खेल बना है, नहीं इनमें आराम।।
स्वार्थ के सब खेल बना है, नहीं इनमें आराम।।
दिन दिन पल पल छिन छिन काया,छीजत जाए तमाम।
ब्रह्मानन्द मग्न पृभु में, मैं पाऊं विश्राम।।
ब्रह्मानन्द मग्न पृभु में, मैं पाऊं विश्राम।।