Kabir Ke Shabd |
कबीर के शब्द
मैं सत्संग के मा जांगी, ढंग देख लिया संसार का।
जो कुटुम्ब कबीला भारा, मतलब का भाईचारा।
वो नर लागै सै प्यारा, जिसका हेला हो रोजगार का।।
कोए कमा-२ थक जावे,कोए खाली बैठा खावै।
वो पेट भरन ना पावै, जनूँ नोकर लगा बाहर का।।
वो पेट भरन ना पावै, जनूँ नोकर लगा बाहर का।।
या हवा ओपरी चाली,ना ऐब बिना कोए खाली।
इंमैं में भी तूँ भी आली, कोए मानस रहा ना इतबार का
जब पौरुष थकजा तेरे,यम गोड़े तोड़ेंगे तेरे।
जब जाए बी ल्हुक जांगे, यो झूठा मोह परिवार का।।
सतगुरु हंस का साथी, उड़ै कोए नहीं हिमाती।
तेरी रामभक्त हद छाती, सदा रहे गुरु दरबार का।।