Kabir Ke Shabd |
कबीर के शब्द
मायावी सँसार झमेला, चार दिनों का मेंला।
खेल गया कोई खेल रहा है, ये सपनों का खेला।।
जोर लगा कर जोड़े दुनिया, अंत करे घर खाली।
बाग बिराना फूल बिराने, चुन के ले गया माली।
धरती रही मुसाफिर गुजरे, संग चला नहीं धेला।।
बाग बिराना फूल बिराने, चुन के ले गया माली।
धरती रही मुसाफिर गुजरे, संग चला नहीं धेला।।
रोते रहे बिलखते संगी, सुने न सुनने वाला।
जब तक बाजै कूच नगारा, मुख में डालें ताला।
बोल न पाए बोल गर्व के, अंत चलन की वेला।।
कौन ठगाया कौन ठगा है, कही नजर की वाणी।
हमसे तुमको तुमसे उनको, बांटे रोटी पानी।
पालन करे कहाँ बे माया, ये तो माटी धेला।।
चार दिनों के जीवन में तूँ, प्यार सभी से करले।
कोई वैरी मीत नहीं, जो रीत ही बहने धरले।
सब एक रस एक जाती के, ज्ञान गुरू मन चेला।।