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मान कहा मन मूर्ख बन्दे, ना बुरा किसी से कहना रे-Kabir Ke Shabd-maan kahaa man murkh bande, naa buraa kisi se kahnaa re।

SANT KABIR (Inspirational Biographies for Children) (Hindi Edition ...
Kabir Ke Shabd 

कबीर के शब्द
मान कहा मन मूर्ख बन्दे, ना बुरा किसी से कहना रे।

निंदा चुगली छोड़ पराई, राम भरोसे रहना रे।।

होनी होके रहे किसी का, नहीं चालता चारा रे।
करण करावन हाथ हरि के, करले मनुष्य विचारा रै।
न्यू करदूँ मैं न्यू करदूँ, फिरै बकता जीव हज़ारा रै।
अनहोनी ना हुई आजतक, जोर घना ने मारा रै।
चित्त की चिंता छोड़ कर्म का, मिल ज्यागा तनै लहणा रै।।

अपना आपा बुरा जगत में, कोय वैरी कोय यार नहीं।
जैसी करनी वैसी भरनी, इसमें कुछ तक़रार नहीं।
भले आदमी करें भलाई, जिनके मन मे खार नहीं।
बुरे आदमी करें बुराई, ये उनके अख्तियार नहीं।
भले बुरे की परख न करना, सब की सिर पे सहना रै।।

दोष और के क्यूं देखै तूँ,अपने दोष मिटा प्यारे।
तनै और तैं के मतलब तूँ, अपना पिंड छूटा प्यारे।
करी जा तो तूँ नेकी करले, बदी को दूर हटा प्यारे।
भली बुरी के बीच खामख्वाह, हो रहा लठमलटा प्यारे।
पर धन खाक समान जान, पर त्रिया माता कहना रै।।
चोरी जारी जूआ जामनी, झूठ कपट छल छोड़ दिये।
मिथ्या बोल मत घाट तोल, मन मेल जोल में जोड़ दिये।
करके सब्र सन्तोष शांति, तृष्णा का सिर फोड़ दिये।
गऊ गोबिंद गुरू गंगा न्हा, गीता ज्ञान निचोड दिये।
कह साधु राम पुन्न दान करन में, ना देखै बामा दाहना रै।।
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