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क्यों काया भटकावै माया, जोड़-२ धन धर ज्यागा-Kabir Ke Shabd-kyon kaayaa bhatkaavai maayaa, jod-2 dhan dhar jyaagaa।

SANT KABIR (Inspirational Biographies for Children) (Hindi Edition ...
Kabir Ke Shabd 

कबीर के शब्द
क्यों काया भटकावै माया, जोड़-२ धन धर ज्यागा।

गीता ज्ञान सुना कर बन्दे, परले पार उतर ज्यागा।।

मातपिता गुरू गऊ की सेवा, करले तन मन लाकै।
सेवा से तेरा पार हो खेवा, देख लिए मेवा खा कै।
धन चाहवै तो धर्म करा कर, तीर्थां पर जा कै।
पुत्र चाहवै कर सन्त की सेवा, मोह माया ने बिसरा कै।
भूखयाँ ने भोजन करवा कै, तूँ राज मुल्क का कर ज्यागा।।

अंगहीन की सेवा करिए, जो तनै बल की चाहना हो।
परनारी तैं बच के रहिये, जो तनै वंश चलाना हो।
विद्वानों की सेवा करले, जो विद्या की चाहना हो।
गऊ के घी का हवन करा कर,जो तनै मेह बरसाना हो।
पाछे तैं पछताना हो,  जब घड़ा पाप का भर ज्यागा।।

निंदा चुगली करे सुने तैं, न्यू नर बहरा गूँगा हो।
धन की चोरी करने वाला, निर्धन भूख नँगा हो।
झूठ गवाही देने वाला,कोढ़ी और कुरंगा हो।
बिना दोष के लावनिया भाई,सात जन्म भिखमंगा हो
तेरे गात का ढंग कुढंगा हो, न्यू ए तड़फ तड़फ के मर ज्यागा।।

खोटी नजर लखावन आला, काना अंधा हो ज्यागा।
मांस मिट्टी के खावण आला, कीड़ा गन्दा हो ज्यागा।
दुखिया ने तरसावन आला, सर्प परिंदा हो ज्यागा।
हरि की बन्दगी करता रहा तूँ, हरि का बन्दा हो ज्यागा।
तेरा आपै धंधा हो ज्यागा, तूँ साधु राम सुमर ज्यागा।।
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