Kabir Ke Shabd |
कबीर के शब्द
क्या तन मांजता रे,आखिर माटी मेँ मिल जाना।।
माटीओढ़न माति पहरन,माति का सिरहाना।
माटी का कलबूत बनाया,तां में भँवर समाना।।
माटी कहे कुम्हार से रे,क्या गूंदे है मोए।
एक दिन ऐसा आएगा रे, मै गोंदूँगी तोए।।
चुनचुन कंकर महल बनाया,बन्दा कहे घर मेरा।
ना घर तेरा ना घर मेरा,चिड़िया रैन बसेरा।।
ना घर तेरा ना घर मेरा,चिड़िया रैन बसेरा।।
फटा ये चोला भया पुराना,कद लग सीवे दर्जी।
दिल का मरहम कोए ना मिल्या, जो मिल्या अलगरजी।।
दिल का मरहम कोए ना मिल्या, जो मिल्या अलगरजी।।
नानक चोला अम्र भया जब,सन्त जो मिल्या दर्जी।
दिल के मरहम सन्त मिलेंगे,उपकारन के गरजी।।
दिल के मरहम सन्त मिलेंगे,उपकारन के गरजी।।