Kabir Ke Shabd |
कबीर के शब्द
खेल समझ के खेलन लागी, पागल दुनिया सारी।
ताश नाश का खेल बताया, थारी क्यूँ गई अक्ल मारी।।
ताश नाश का खेल बताया, थारी क्यूँ गई अक्ल मारी।।
बावन पत्ते बावन ज्ञानी, ज्ञान रूप प्रकाश यही।
आपस मे मिल बाँट के खाना, देते शिक्षा खास यही।
हार जीत का दुनिया के में है सच्चा इतिहास यही।
जो खेल समझ के खेलन लागे, उनका सत्यानाश सही।
समझनियाँ मानस जानेगा, इन पत्ता की गत न्यारी।।
प्रथम है आकीद जहानु जोत ज्ञान की जलती।
दुगी में दो जीव आत्मा, जहां से सृष्टि चलती।
तिग्गी तीन पत्र की वाणी, अस्नान शान्ति मिलती।
चुगी चार वेद की मालिक, जो कोरा ऐ ज्ञान उगलती।
पंजी पंच भूत की माता, जिनै रची सृष्टि सारी।।
छक्की में छः छपे शास्त्र, जो मीठी वाणी बोल रहे।
सत्ती के में सप्त ऋषि, जो सात समंदर डोल रहे।
अट्ठी आठ वशु की मालिक, प्रेम जिगर का घोल रहे
नहले में नो गृह देवता, मनुष्य मात्र को तोल रहे
दहले में दस दरवाजे हवा, दसों दिशा से आ रही।।
लख्मी चंद गुलाम रहे जो, अपनी रक्षा करता।
एक बेगम की बनी मूर्ति, चरणों मे सिर धरता।
ओर इनके ऊपर काल बादशाह नहीं किसी से डरता।
ओर इन सारों के ऊपर इक्का, जो जन्म लेत ना मरता।
इन चार कलियों का भेद खोल दे, वो खेलन का अधिकारी।।