Kabir Ke Shabd |
कबीर के शब्द
करो हरि का भजन प्यारे, उमरिया बीती जाती है।
पूर्व तूँ कर्म कर आया,मनुष्य तन धरणी पे पाया।
विरह विषयो में भरमाया, बहुत नहीं याद आती है।।
बालापन खेल में खोया, जवानी काम वश होया।
बुढापा देख के रोया, आशान की सताती है।।
कुटुम्बपरिवार सुतदारा, सपनसम जानतसब सँसारा।
माया का जाल विस्तारा, नहीं ये संग जाती है।।
जो गुरू चरण चित्त लावै, वो भवसागर तर जावै।
ब्रह्मानन्द मोक्ष पद पावै, वेद वाणी सुनाती है।।