Kabir Ke Shabd |
कबीर के शब्द
कर महलों की शैल महल मतवारा है।
नो दरवाजे प्रकट दिखें, दसवें अनहद खेल।
सोहंगम तारा है।।
कारीगर करतार बनाया,किहैं कर गुप्त प्रकट कर लाया।
नर नारायण नाम धराया, भीतर निर्गुण खेल।
अर्श उजियारा है।।
नर नारायण नाम धराया, भीतर निर्गुण खेल।
अर्श उजियारा है।।
पांचों तत्व मिलाय बनाया, नैन झरोखा खूब लगाया।
अंतर्गत में आप समाया, झलके अविगत छैल।
जगत से न्यारा है।।
अंतर्गत में आप समाया, झलके अविगत छैल।
जगत से न्यारा है।।
स्वामी गुमानी राम बताया, महल माहीं महबूब दिखाया।
पांच पचीस उलट कै लाया,उतर गया सब मैल।
फिर निरख निहारा है।।
पांच पचीस उलट कै लाया,उतर गया सब मैल।
फिर निरख निहारा है।।
नित्यानन्द कुछ अजब तमाशा,माहें धरती माहें आकाशा
सूरज चांद असंख्य उजासा, भाज गया बद फैल।
मिला प्रीतम प्यारा है।।
सूरज चांद असंख्य उजासा, भाज गया बद फैल।
मिला प्रीतम प्यारा है।।