Kabir Ke Shabd |
कबीर के शब्द
कण कण में बसा पृभु देख रहा, चाहे पूण्य करो चाहे पाप करो।
कोए उसकी नजर से बच न सका, चाहे पूण्य करो चाहे पाप करो।।
ये जगत रचा है ईश्वर ने, जीवों के कर्म करने के लिये।
कुछ कर्म नए करने के लिये, पहले जो किये भरने के लिए।
ये आवागमन का चक्र चला।।
ये आवागमन का चक्र चला।।
सब पूण्य का फल तो चाहते हैं, पर पूण्य कर्म नहीं करते हैं।
फल पाप का लोग नहीं चाहते हैं, जिन में दिनरात, विचरते हैं।
मिलता है सभी को अपना किया।।
इंसान शुभाशुभ कर्म करे,अधिकार मिला है जमाने मे।
कर्मों में स्वतंत्र बना है पर, परतन्त्र सदा फल पाने में।
है न्याय पृभु का बहुत कड़ा।।
इस जीवन मे कृत कर्मों का फल, हरगिज माफ नहीं होगा।
सब सत्य यहां खुद दान करो, पर दामन साफ नहीं होगा।
रहे आदि पथिक ये नियम सदा।।