Kabir Ke Shabd |
कबीर के शब्द
काया नगर गढ़ भारी रे साधो।
तीन पांच का कोट बना है, बिस पांव रखवारी।।
गगनभूमि में एक झंडा भारी, डोर लगी एकसारी।
अटपट रंग कोए विरला जानै,सूरत शिखर में जारी।।
मुक्ति द्वार पै मन है सिपाही, ले पांचों हथियारी।
रैन दिवस अति चंचल गति से, सुमरन करै अति भारी।।
रैन दिवस अति चंचल गति से, सुमरन करै अति भारी।।
सुरवीर आगे पग धरता, कायर पड़े पिछाड़ी।
चतुर होए सो जीतै रण में, हारै यो मूढ़ अनाड़ी।।
चतुर होए सो जीतै रण में, हारै यो मूढ़ अनाड़ी।।
बंकनाल पथ लोहा बाजै, आठ पहर एकसारी।
लागै गोला ज्ञान का, भरम कै कोट संहारी।।
लागै गोला ज्ञान का, भरम कै कोट संहारी।।
तन की चिंता तनक न राखे,जीत चलै रण भारी।
अमरनाथ ये अमरपद पावै, तूरया तुरत विचारी।।
अमरनाथ ये अमरपद पावै, तूरया तुरत विचारी।।