Kabir Ke Shabd |
कबीर के शब्द
काया का पिंजरा डोले रे, सांस का पंछी बोले रे।।
ले के साक्षी जाना है, और जाने से क्या घबराना है।
ये दुनिया मुसाफिर खाना है, तूँ जाग जगत ये सोले रे।।
कर्म अनुसारी फल ले रे, और मनमानी अपनी करले रे।
तेरा घमंड सारा झडले रे, अभिमानी मान क्यूँ डोले रे।।
मातपिता भाईबहन पतिपत्नी, कोई नहीं तूँ किसी का रे
कह कबीर झगड़ा जीते जी का,अब मन ही मन क्यूँ डोले रे।।