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Kabir Ke Shabd |
कबीर के शब्द
कारीगर की चातरी, कैसा खेल रचाया।
सन्त बिना बहुतक पचे, कोए भेद न पाया।।
माटी का कलबूत बनाया, कैसा है सजाया।
न दर सबको दिखते है, दसवां गुप्त बनाया।।
न दर सबको दिखते है, दसवां गुप्त बनाया।।
ब्रह्मांड की जो रचना है, पिंड उसी की छाया।
पांच गुण तत्व तीन बीच,रहा है जीव समाया।।
पांच गुण तत्व तीन बीच,रहा है जीव समाया।।
अठारह पैड़ी लाए के,पच्चीस का जाल फैलाया।
दस खम्बों का छत,तेतीस का शहतीर लगाया।।
दस खम्बों का छत,तेतीस का शहतीर लगाया।।
तपधारी तप तप मरै कछु हाथ न आया।
ज्ञानी योगी भरम में, रहे सब भूल भुलाया।।
ज्ञानी योगी भरम में, रहे सब भूल भुलाया।।
व्रती संयमी खाली रहे, झूठा तन जलाया।
तीर्थ भरमत बहुतक गए,न्यू ए वक्त गंवाया।।
तीर्थ भरमत बहुतक गए,न्यू ए वक्त गंवाया।।
सतगुरु ताराचंद कह समझ कंवर,तेरा तुझ में है समाया।
आपे में आपा पा लिया, जो राधास्वामी शरणे आया।।
आपे में आपा पा लिया, जो राधास्वामी शरणे आया।।