Kabir Ke Shabd |
कबीर के शब्द
जो गुरु शब्द पे डटगे, कटगे फन्द चौरासी के।
निश्चय किया सार आसार, वृति हरदम रह इकसार।
तन मन मार भजन में लगगे, मिलगे घर अविनासी को।।
गरजे सिंह केशरी वन के, चल दिये यार मुरखपन के।
दब मन के संयम भगे, लगे फल बारह मासी के।।
मिला दिया जग पाटा हुआ जोड़, थकी सब मन कपटी की दौड़।
वस्तु मिली ठौड़ की ठौड़, भरम छूटे मक्का कांसी के।
कौन सुनै मैं किसे सुनाऊं,मन में समझ-२ रह जाऊं।
इतने कौनसे नुक्से गाऊं, गुण ओंकार सन्यासी के।