Kabir Ke Shabd |
कबीर के शब्द
जीवन ये अनमोल रे, तूने यूँ ही गुजारा।
बड़ा कठिन है मानव का ये, मिलना जन्म दोबारा।।
ब्रह्मा विष्णु शिव भी, तरसे मानव तन को।
रोक सके तो रोकले पापी चंचल मन को।
पछताएगा बह जाएगी जब, ये समय की धारा।।
मस्त हुआ विषयों में, फंस कर ओ दीवाने।
इस जग में आया है तुं, अपना फर्ज निभाने।
इस दुनिया मे आके तूने, कुछ भी नहीं विचारा।।
इस जग में आया है तुं, अपना फर्ज निभाने।
इस दुनिया मे आके तूने, कुछ भी नहीं विचारा।।
रामनाम को छोड़कर, चला पाप की राही।
ईश्वर के दरबार में, देगा कौन गवाही।
ओ अभिमानी तूने तो रे, हरि का नाम विसारा।।
जो वादा करके आया, बन्दे वो भी भुला।
धन दौलत मोह जाल के,नशे में तुं क्यों टूला।
पृभु के ये भक्त पुकारें, जप रामनाम तुं प्यारा।।