Kabir Ke Shabd |
कबीर के शब्द
जीवन तो भैया एक रेल है।कभी पैसेंजर कभी मेल है।
सुख दुख की पटड़ी पे दौड़ लगाती है, मंजिल तक हम को ये पहुंचाती है।
सांसों का जब तक इसमे तेल है।।
रामनाम की टिकट कटा लेना, पूछे जो टीटी टिकट दिखा देना।
बिना टिकट तो सीधी जेल है।।
रिश्ते भी बनते और बिगड़ते हैं, यात्री जो चढ़ते और उतरते हैं।
पृभु का ही ये सब खेल है।।