Kabir Ke Shabd |
कबीर के शब्द
जतन बिना मृगां ने खेत उजाड़ा जी।
पाँच मृग पचीस मृगाणी, तामें तीन शिकारा।
अपने -२ रस के भोगी, चुगा चुगें न्यारा न्यारा रे।।
उठ-२ झुंड मृगां के धाए, बैठे खेत मंझारा।
हो हो करते बाल ले भागे, मुँह बांए रखवारा।।
मारा मरै टरै नहीं टारा, बिडरे नहीं बिडारा।
अति प्रपंच महा दुखदायी, तीन लोक पचिहारा।।
अति प्रपंच महा दुखदायी, तीन लोक पचिहारा।।
ज्ञान का भुला, सूरत का चुका, गुरु का शब्द रखवाला।
कह कबीर सुनो भई साधो, विरला भले ही सम्भाला।।
कह कबीर सुनो भई साधो, विरला भले ही सम्भाला।।