![]() |
Kabir Ke Shabd |
कबीर के शब्द
जगा ले सजनी, बन्ना सोवै है अटारी।
उस बन्ने कै रूप रेख ना, अक्षर तक का लिखा लेख ना।
अमर पुरुष जो धरे भेख ना, शोभा वा की अगम अपारी।।
उस बन्ने के चरणों का दासी,काटेंगे यम घर की फांसी।
आत्म रूप अचल अविनासी, वा की सूरत पै बलिहारी।।
जारा जरै मरै ना मारा, टारा टरै न बिडरै बिडारा।
तीन लोक उनै खोजत हारा, कहते हम दे दे किलकारी।।
कह कबीर इस बन्ने को मोहले,सुन्न शिखर में जा के टोहले।।
अपना आप जगत से खोले, सूरत दृष्टि के मूरत निहारी।।