Kabir Ke Shabd |
कबीर के शब्द
जागो रे माया के लोभी, सत्गुरु चरणां लाग रे।
राम भजे सो हंस कहावै, कमी क्रोधी काग रे।
मतलब के वश वन में भंवरा,चलो अमरपुर बाग रे।।
कर्म कांचली चढ़ी शीश पे,हुआ मनुष से नाग रे।
गुरु सुख सागर सोचा नाहीं,बिना ज्ञान वैराग रे।।
गुरु सुख सागर सोचा नाहीं,बिना ज्ञान वैराग रे।।
उम्दा चोला मिला अमोला, लगै दाग पे दाग रे।
दो दिन की गुजरान जगत में,क्यों जले बिरानी आग रे।।
दो दिन की गुजरान जगत में,क्यों जले बिरानी आग रे।।
तन सराय में जीव मुसाफिर, करत रहे खुराफात रे।
रैन बसेरा करले न डेरा, उठ सवेरा त्याग रे।।
रैन बसेरा करले न डेरा, उठ सवेरा त्याग रे।।
उठ सवेरे भरा तमाखू,फूटे तेरे भाग रे।
राम भजा ना सुकृत कीन्हा,क्या जागा निर्भाग रे।।
राम भजा ना सुकृत कीन्हा,क्या जागा निर्भाग रे।।
शब्द शरण सतगुरु की समझ ले, पावै अटल सुहाग रे
नित्यानन्द महबूब गुमानी, पूर्ण प्रगट भाग रे।।
नित्यानन्द महबूब गुमानी, पूर्ण प्रगट भाग रे।।