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Kabir Ke Shabd |
कबीर के शब्द
होता क्यूं ना गरीब रे ऐसी क्या गुमराही।।
कुंण-२ होगे हो हो डिगरगे जी,
चकवा बैन से वीर रे, जिनकी फिरै थी दुहाई।।
के के हुआ और के के होगा जी,
राजा रंक फकीर रे, न्यू ए होती आई।।
एक एक दिन तेरा बीता जावे,
सदा ना रहेगा शरीर रे, तनै सूझत नाही।।
यमराजा का आवे हलकारा,
गल में घलेगी जंजीर रे, वहां चले ना दुहाई।।
जन नानक पे किरपा होगी,
हर सांस में जपलो नाम रे, मानस देह पाई।।