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Kabir Ke Shabd |
कबीर के शब्द
हो मूर्ख बन्दे,क्या है रे जग में तेरा।
ये तो सब झूठा सपना है,कुछ तेरा न कुछ मेरा ।।
कितनी भी माया जोड़ले,कितने ही महल बनाले।
अरे तेरे मरने के बाद सुन ये तेरे ही घरवाले।
दो गज कफ़न उढा के तुझको, छीन लेंगे तेरा डेरा।।
कोठी बंगले कर देख कर, तुं क्यों इतना इतराता है
पत्नी और बच्चों के बीच तुं, फुला नही समाता है।
ये तो चार दिनों की चांदनी है, फिर आएगा अंधेरा।।
मूर्ख अपनी मुक्ति का तुं जल्दी कर उपाय।
किस दिन किस घड़ी न जाने,बांह पकड़ ले जाए।
तेरे साथ मे घूम रहा है, बनकर काल लुटेरा।।
तेरे साथ मे घूम रहा है, बनकर काल लुटेरा।।
पाप कमाया तनै बहुत,अब थोड़ा धर्म कमाले।
कुछ तो समय अजमेर या तूं रामनाम गुण गा ले।
रामनाम से मिट जाएगा, जन्म मरण का फेरा रे।।