Kabir Ke Shabd |
कबीर के शब्द
हर प्रीतम से प्रीत लगाके, इब क्यूं जग में सोवे री।
पृभु विचार वार सिर लेना,जन्म अमोलक खोवे री।
जो जागी सो चरणां लागी, जो सोवे सो खोवे री।।
अमृत अमर छोड़ के बावली,विषय बीज क्यों बोवे री।
ऐसी मेहर फेर कहां पाइये मुंड पकड़ के रोवे री।।
ऐसी मेहर फेर कहां पाइये मुंड पकड़ के रोवे री।।
प्रेम नगर की डगर चले जो,पृभु का गुण मन पोवे री।
हे मेरी प्यारी मन मतवारी, रंग में रंग समोवे री।।
चरण चन्द चित्त माहें चेतकै, चादर क्यूँ ना धोवे री।।
नित्यानन्द महबूब गुमानी, दिल विच दर्शन होव री।।