Kabir Ke Shabd |
कबीर के शब्द
हर हर भजता नाहीं रे, ये मन भया दीवाना।।
काम क्रोध मद लोभ मोह का, घट में ही कुफराना।।
बाहर बुगला ध्यान लगावै, भीतर पाप समाना।
भला बुरा भीतर बाहर का, साहिब से नहीं छाना।।
सुर असुर ऋषस्वर लूटे, मुनिवर मार गिराना।
जोगी जति तपी सन्यासी, भूले भक्त ठिकाना।।
प्रेम पंथ पग धरन न देवै, तजा ज्ञान और ध्याना।
कुमति कूप में यो डर जावै, जैसे नीर निवाना।।
मनमुख पंडित मनमुख मण्डित,मनमुख राजा राणा।
नित्यानन्द जिसे महल गुमानी, गुरुमुख मार्ग जाना।।