Kabir Ke Shabd |
कबीर के शब्द
हंसा कौन लोक के वासी रे।
कौन लोक को आए हंसा, कौन लोक को जासी।
क्या-२कॉपी उस लोक की हम को कहो जरासी।।
अमरलोक से हम हैं आए, जहां पुरुष अविनासी।
दुख सुख चिंता नहीं वहां पे, ना कोए शोक उदासी।।
दिया बाती चांद सूरज बिन, सदा वहां उजियासी।
बीन बांसुरी मृदंग बाजे, छह रुत बारह मासी।।
बीन बांसुरी मृदंग बाजे, छह रुत बारह मासी।।
हीरे पन्ने लाल वहां पर, अर्पण सुर प्रकासी।
अगम अपार है हवा वहां की, करे आराम काया सी।।
अगम अपार है हवा वहां की, करे आराम काया सी।।
सतगुरु ताराचंद समझावै कंवर नै,अंदर की करो तलासी
लोक हमारा—-/
लोक हमारा—-/