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Kabir Ke Shabd |
कबीर के शब्द
गुरु जी ओड़ निभाइयो, ओड़ निभाइयो मेरी।
ऐब शवाब भरे मुझ माहीं जी, मैं मेरी का दाता, पोट गिराइयो मेरी।।
मुझ में तो कुछ ताक़त नाहीं जी,
अपनी नोका में दाता, हमको बिठाइयो जी।।
भँवसागर में नाव पड़ी है जी,
सूरत निरत की दाता बली ए लगाइयो जी।।
घीसा सन्त शरण जीता की जी,
अपनी तो दाता भक्ति कराइयो जी