Kabir Ke Shabd |
कबीर के शब्द
घट पट में लखो है दीदार,इस जग में काहे भटक रही।।
जग तो दुख द्वंद का सिंध है, नहीं पाया कोए पार।
इंगला पिंगला तज दो दोनों,जाओ सुखमना द्वार।।
तिल के भीतर तिल को देखो, दोनों तिल करो इकसार।
बाहरी वृति छोड़ो सारी,सन्त सुनो झंकार।।
बाहरी वृति छोड़ो सारी,सन्त सुनो झंकार।।
कोटि सूरज चन्द्र देखो, खिले भांति-२ फुलवार।
बिजली चमके बादल गरजे, बहे अमिजल धार।।
बिजली चमके बादल गरजे, बहे अमिजल धार।।
ताराचंद महबूब मिले, जिन्हें दिया शब्द का सार।
जीवों का आवागमन छुड़ावै,जो पकड़े शरण सम्भार।।
जीवों का आवागमन छुड़ावै,जो पकड़े शरण सम्भार।।