Kabir Ke Shabd |
कबीर के शब्द
इसने मैं कैसे समझाऊं, मेरा यो मन मानता नहीं जी।
एक देव की पूजा मानूँ, दूजा ना ध्याऊँ।
घट में बसते आप कुदरती, नित उठ दर्शन पाऊं।।
भई व्रत करे तो पाछे रोऊँ, दोजख में जाऊं।
नहीं काम कोए पूजा का, ना कोए तीर्थ नहाऊं।।
वन में जाऊं तो कांटे लागें, दूना दुःख पाऊं।
धुना लाऊं तो जीव जलें रे, कैसे मुक्ति पाऊं।।
धरम करूँ तो फिर देह धारूँ,चौरासी में आऊं।
अधर्म करूँ तो मिलूं जोत में, लौ में लौ मिल जाऊं।।
कह कबीर सुनो भई साधो, सूरत निरत में नहाऊं।
इस काया नै छोड़ कै रे, अमरापुर चला जाऊं।।