Kabir Ke Shabd |
कबीर के शब्द
इंसान जगत में आ के, तुं क्यों मगरूर है।
जिसने तुझको पैदा किया, उससे भी दूर है।।
दौलत ने तेरे ऊपर, ये क्या जाल डाला है।
चारों तरफ देखे, तुं तो ये उजाला है।
नागिन को समझता मूर्ख, जन्नत की हूर है।।
चारों तरफ देखे, तुं तो ये उजाला है।
नागिन को समझता मूर्ख, जन्नत की हूर है।।
छोटे बड़े का तूने, जग में भेद बनाया।
आए कहां से सब तुं, इतना जान ना पाया।
ये भी तूने ना सोचा, सब उसका ही नूर है।।
आए कहां से सब तुं, इतना जान ना पाया।
ये भी तूने ना सोचा, सब उसका ही नूर है।।
तुं ना समझा हाथ जिसके, जीवन की डोर है।
उसके आगे चलता, नहीं कोई जोर है।
तुं तो बस इतना समझा,जग में तुं मशहूर है।।
उसके आगे चलता, नहीं कोई जोर है।
तुं तो बस इतना समझा,जग में तुं मशहूर है।।
स्वरूप उसका बन्दे, तुं जान न पाया।
सन्तों ने वेदों ने,तुझे इतना समझाया।
इस झूठी सी काया का,करता गुरुर है।।
सन्तों ने वेदों ने,तुझे इतना समझाया।
इस झूठी सी काया का,करता गुरुर है।।