Kabir Ke Shabd |
कबीर के शब्द
दो पहिये की गाड़ी तेरी, हँसलो गाड़ीवान।
डगर पर चलती है।।
इंजन इसका अजब बनाया,कारीगर कतार।
डगर पर चलती है।।
डगर पर चलती है।।
पाप धरम दो पटरी हैं, गाड़ी आती जाती है।
कर्म का सिग्नल लगता है, गाड़ी वहां रुक जाती है।
लख चौरासी हैं स्टेशन, करती है ये पार।।
कर्म का सिग्नल लगता है, गाड़ी वहां रुक जाती है।
लख चौरासी हैं स्टेशन, करती है ये पार।।
नो दस मास बनाने में, इस गाड़ी को लगता है।
हाड़ मांस के पिंजरे, पल पल गाड़ी रचता है।
ईस गाड़ी में बहत्तर पुर्जे,नो नाड़ी दस तार।।
हाड़ मांस के पिंजरे, पल पल गाड़ी रचता है।
ईस गाड़ी में बहत्तर पुर्जे,नो नाड़ी दस तार।।
तत्व के पांच लगे डब्बे,मन का इंजन लगता है।
उदर की अग्नि में भाई, दो टेम कोयला लगता है।
भजन बैटरी इस गाड़ी की, दूर करे अंधियार।।
उदर की अग्नि में भाई, दो टेम कोयला लगता है।
भजन बैटरी इस गाड़ी की, दूर करे अंधियार।।
ज्ञानीराम जी गार्ड बने, हाथ मे झंडी रखते हैं।
बुद्धिमान चैकर इसका, टिकट चैक वो करता है।
कह भक्तगण इस गाड़ी को, समझे समझनहार।।
बुद्धिमान चैकर इसका, टिकट चैक वो करता है।
कह भक्तगण इस गाड़ी को, समझे समझनहार।।