Kabir Ke Shabd |
कबीर के शब्द
चल हंसा वा देश जहां, पिया बसै चित चोर।
सूरत सुहागिन है पनिहारी,भरे ठाढ़ बिन डोर।।
वही देशवा बदल न उमड़े, रिमझिम बरसै मेंह।
चौबारे में बैठ रहो ना, जा भिजहूँ निर्देह।।
चौबारे में बैठ रहो ना, जा भिजहूँ निर्देह।।
वही देशवा में नित पूर्णिमा, कबहुँ न होई अंधेर।
एक सूरज कै कौन बतावै, कोटिक सूरज ऊंजेर।।
एक सूरज कै कौन बतावै, कोटिक सूरज ऊंजेर।।
कह कबीर सुनो भई साधो, अमृत वचन हमार।
जो भल चाहो आपनो, परखो करो विचार।।
जो भल चाहो आपनो, परखो करो विचार।।