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बुगला भक्ति करके बन्दे, झूठा ढोंग रचाना क्या-Kabir Ke Shabd-buglaa bhakti karke bande, jhuthaa dhong rachaanaa kyaa।

SANT KABIR (Inspirational Biographies for Children) (Hindi Edition ...
Kabir Ke Shabd 

कबीर के शब्द
बुगला भक्ति करके बन्दे, झूठा ढोंग रचाना क्या।
मन मन्दिर में भाव नहीं तो, कांसी मथुरा जाना क्या।।

नित उठ जावै रोज न्हावै, बात करै वहां घर घर की।
झूठा धर्म पीपला पाड़ै, दशा बिगड़ जा उस नर की।
ईश्वर का ना ध्यान लगाया, फिर चरणामृत पाना क्या।।


जटा बधाई राख रमाई, हाथ कमण्डल धार लिया।
आडा सीधा तिलक निकालें, गले मे माला डाल लिया।
साधु का तूँ नेम न जाणै, तो पहरै भगवां बाणा क्या।।

राग रागनी जहां पर होते, वहां पर शोर मचाता है।
भजन भाव से नफ़रत करता, रँगी नाच नचाता है
सुर और ताल का ज्ञान नहीं तो, सभा बीच मे गाना क्या।।

जहाँ कीर्तन होता है, भई वहाँ पे निन्द्रा आती है।
व्रत पूजा से आलस करता, भूख तुझे सताती है।
चन्दन की तूँ सार न जाने, तो मस्तक तिलक लगाना क्या।।

भोजन करने बैठ गया भई, आसन का तुझे ध्यान नहीं।
शंकर ध्यान धरो तन मन से, क्या पास तेरे भगवान नहीं
ऊंच नीच की बात बखानै तो, खा कै फेर पछताना क्या।।
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