Kabir Ke Shabd |
कबीर के शब्द
भजो नाम अविनाशी सन्तों भजो।
या जग ही कि रंगत काची,सब घट माया रांची।
अपना रूप दिखाए बावले, गल बिच घालै फांसी।।
अपना रूप दिखाए बावले, गल बिच घालै फांसी।।
सद्गुरु रूप सहज चल आए,शब्दों किया मिलासी।
जब अपने को देह धर आए, न काटन यम की फांसी।।
मन मुथरा मे आप विराजे,ये तन तेरा कांसी।
लीग कहें ये हुए बावले, देखत आवै मोहे हांसी।।
लीग कहें ये हुए बावले, देखत आवै मोहे हांसी।।
शीतल रूप गुरू का देखा, जग में रहे उदासी।
घीसा सन्त पे कृपा हो रही, टूटी भर्म संडासी।।