Kabir Ke Shabd |
कबीर के शब्द
भज हंसा हरिनाम जगत में, जीवन थोड़ा रे।
काया आई पावनी रे, हंस आया मेहमान।
पानी का सा बुलबुला रे, थोड़ा सा उनमान।
बना कागज का घोड़ा रे।।
मात पिता सुत बान्धवा रे, ओर दुल्हनिया नार।
ये मिलें बिछड़ें सभी रे,ये शोभा दिन चार।
बना दो दिन का जोड़ा रे।।
सोऊं-२ क्या करे रे सोवत आवे नींद।
काल सिरहाने न्यू खड़ा रे, ज्यूँ तोरण पे बींद।
खींचा जैसे ताज़ा घोड़ा रे।।
राम भजन की हंसी माने, मन मे राखे पाप।
पेट पलनिया वे चलें रे,ज्यूँ जंगल के सांप।
नेह जिन हरि से तोड़ा रे।।
हाड़ जलें ज्यूँ लाकड़ी रे, केश जलें ज्यूँ घास।
जलती चिता ने देख कै रे, हुए कबीर उदास।
नेह जिन हरि से जोड़ा रे।।