Kabir Ke Shabd |
कबीर के शब्द
बंगला भला बना दरवेश, जिसमे नारायण प्रवेश।
पांच तत्व की ईंट बनाई, तीन गुणों का गारा।
पचीसां की छात छवाई, चिन गया चिनने हारा।।
इस बंगले में नो दरवाजे, बीच पवन का खम्बा।
आवत जावत कुछ न दीखै, ये भी बड़ा अचंभा।।
आवत जावत कुछ न दीखै, ये भी बड़ा अचंभा।।
इस बंगले में चौपड़ मांडी, खेलैं पांच पचीस।
कोए तो बाजी हार चला रे, कोए चला जग जीत।।
कोए तो बाजी हार चला रे, कोए चला जग जीत।।
इस बंगले में पात्र नाचें, मनवा ताल लगावै।
सूरत निरत के बांध घुंघरू, राग छतीसों गावै।।
सूरत निरत के बांध घुंघरू, राग छतीसों गावै।।
शरण मछँदर जति गोरख बोलै, जिसने यो बंगला गाया।
इस बंगले के गावण आला, फेर जन्म ना पाया।।
इस बंगले के गावण आला, फेर जन्म ना पाया।।