Kabir Ke Shabd |
कबीर के शब्द
अवधू अंधा धुंध अंधियारा।।
या घट भीतर वन और बस्ती,याही में झाड़ पहाड़ा।
बया घट भीतर बाग बगीचे, या ही में सिंचनहारा।।
या घट भीतर सोना चांदी,या ही में लगा बजारा।
या घट भीतर हीरा मोती, या ही में परखनहारा।।
या घट भीतर सात समंदर,या ही में नदियां नाला।
या घट भित्रसुरज चन्दा, या ही में नो लख तारा।।
या घट भीतर बिजली चमके,या ही में होत उजियारा।
या घट भीतर अनहद बाजै, बरसै अमृत धारा।।
या घट भीतर कामधेनु है, कल्पवृक्ष एक न्यारा।
या घट भीतर रिद्धि सिद्धि के, भरे अटल भंडारा।।
या घट भीतर तीन लोक हैं,या ही में है करतारा।
कह कबीर सुनो भइ साधो, या ही में गुरु हमारा।।