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Kabir Ke Shabd |
कबीर के शब्द
अवगत से चल आया रे तेरा भेद भृम ना पाया
ना मेरा जन्म ना गर्भ बसेरा,ना बालक गौद खिलाया
कांसी शहर जल बिच डेरा,तहाँ जुलाहा पाया
मात पिता मेरे कुछ नाहीं नहीं गृह और दासी
जुलहा का सूत आं कहाया लोग करें मेरी हासी
धरन गगन मेरे कुछ नाहीं,सूझे अगम अपारा
सत् सरूपी नाम साहिब का,जो है नाम हमारा
सत् सरूपी नाम साहिब का,जो है नाम हमारा
अधर दीप और भँवर गुफा में,ता निज वस्तु हमारा
ज्योंति सरूपी अलख निरंजन,जपते नाम हमारा
ज्योंति सरूपी अलख निरंजन,जपते नाम हमारा
हाड ना मांस लहू ना मेरे,हम है सत्य उपासी
तारन तारन अभय पड़ दाता, कह कबीर अविनाशी
तारन तारन अभय पड़ दाता, कह कबीर अविनाशी