Kabir Ke Shabd |
कबीर के शब्द
अवधु माया तजी न जाई।
गृह तजकर बस्तर बांधा, बस्तर तजके फेरी।
लड़का तजके चेला कीन्हा, तहूं मति माया फेरी।।
जैसे बेल बाग में उरझी, माहें रही अरुझाई।
छोड़े से वह छूटे नाहीं, कोटिन करे उपाय।।
काम तजै तै क्रोध न जाई, क्रोध तजै ते लोभा।
लोभ तजे अहंकार न जाई, मान बड़ाई शोभा।।
मन वैरागी माया त्यागी, शब्द में सूरत समाई।
कह कबीर सुनो भई साधो, ये गम विरले पाई।।