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कबीर भजन संग्रह-kabir ke bhajan


कबीर के भजन

kabirji2संत कबीर भजन संग्रह॥
करम गति टारै
करम गति टारै नाहिं टरी॥ टेक॥
मुनि वसिष्ठ से पण्डित ज्ञानी  सिधि के लगन धरि।
सीता हरन मरन दसरथ को  बनमें बिपति परी॥ १॥
कहॅं वह फन्द कहॉं वह पारधि  कहॅं वह मिरग चरी।
कोटि गाय नित पुन्य करत नृग  गिरगिट-जोन परि॥ २॥
पाण्डव जिनके आप सारथी  तिन पर बिपति परी।
कहत कबीर सुनो भै साधो  होने होके रही॥ ३॥
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kabirji2रे दिल गाफिल

रे दिल गाफिल गफलत मत कर  
     एक दिना जम आवेगा॥ टेक॥
सौदा करने या जग आया  
     पूजी लाया  मूल गॅंवाया 
प्रेमनगर का अन्त न पाया  
     ज्यों आया त्यों जावेगा॥ १॥
सुन मेरे साजन  सुन मेरे मीता  
     या जीवन में क्या क्या कीता 
सिर पाहन का बोझा लीता  
     आगे कौन छुडावेगा॥ २॥
परलि पार तेरा मीता खडिया  
     उस मिलने का ध्यान न धरिया 
टूटी नाव उपर जा बैठा  
     गाफिल गोता खावेगा॥ ३॥
दास कबीर कहै समुझाई  
     अन्त समय तेरा कौन सहाई 
चला अकेला संग न को  
     कीया अपना पावेगा॥ ४॥
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झीनी झीनी बीनी चदरिया
झीनी झीनी बीनी चदरिया॥ टेक॥

kabirji2काहे कै ताना काहे कै भरनी
      कौन तार से बीनी चदरिया॥ १॥
इडा पिङ्गला ताना भरनी
      सुखमन तार से बीनी चदरिया॥ २॥
आठ कँवल दल चरखा डोलै
      पाँच तत्त्व गुन तीनी चदरिया॥ ३॥
साँ को सियत मास दस लागे
      ठोंक ठोंक कै बीनी चदरिया॥ ४॥
सो चादर सुर नर मुनि ओढी
      ओढि कै मैली कीनी चदरिया॥ ५॥
दास कबीर जतन करि ओढी
      ज्यों कीं त्यों धर दीनी चदरिया॥ ६॥
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      कौन तार से बीनी चदरिया॥ १॥
इडा पिङ्गला ताना भरनी
      सुखमन तार से बीनी चदरिया॥ २॥
आठ कँवल दल चरखा डोलै
      पाँच तत्त्व गुन तीनी चदरिया॥ ३॥
साँ को सियत मास दस लागे
      ठोंक ठोंक कै बीनी चदरिया॥ ४॥
सो चादर सुर नर मुनि ओढी
      ओढि कै मैली कीनी चदरिया॥ ५॥
दास कबीर जतन करि ओढी
      ज्यों कीं त्यों धर दीनी चदरिया॥ ६॥
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दिवाने मन

दिवाने मन  भजन बिना दुख पैहौ ॥ टेक॥
पहिला जनम भूत का पै हौ  सात जनम पछिताहौ।
कॉंटा पर का पानी पैहौ  प्यासन ही मरि जैहौ॥ १॥
दूजा जनम सुवा का पैहौ  बाग बसेरा लैहौ।
टूटे पंख मॅंडराने अधफड प्रान गॅंवैहौ॥ २॥
बाजीगर के बानर हो हौ  लकडिन नाच नचैहौ।
ऊॅंच नीच से हाय पसरि हौ  मॉंगे भीख न पैहौ॥ ३॥
तेली के घर बैला होहौ  ऑंखिन ढॉंपि ढॅंपैहौ। 
कोस पचास घरै मॉं चलिहौ  बाहर होन न पैहौ॥ ४॥
पॅंचवा जनम ऊॅंट का पैहौ  बिन तोलन बोझ लदैहौ।
बैठे से तो उठन न पैहौ  खुरच खुरच मरि जैहौ॥ ५॥
धोबी घर गदहा होहौ  कटी घास नहिं पैंहौ।
लदी लादि आपु चढि बैठे  लै घटे पहुॅंचैंहौ॥ ६॥
पंछिन मॉं तो कौवा होहौ  करर करर गुहरैहौ।
उडि के जय बैठि मैले थल  गहिरे चोंच लगैहौ॥ ७॥
सत्तनाम की हेर न करिहौ  मन ही मन पछितैहौ।
कहै कबीर सुनो भै साधो  नरक नसेनी पैहौ॥ ८॥
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केहि समुझावौ

केहि समुझावौ सब जग अन्धा॥ टेक॥
इक दु होयॅं उन्हैं समुझावौं 
सबहि भुलाने पेटके धन्धा।
पानी घोड पवन असवरवा 
ढरकि परै जस ओसक बुन्दा॥ १॥
गहिरी नदी अगम बहै धरवा 
खेवन- हार के पडिगा फन्दा।
घर की वस्तु नजर नहि आवत 
दियना बारिके ढूॅंढत अन्धा॥ २॥
लागी आगि सबै बन जरिगा 
बिन गुरुज्ञान भटकिगा बन्दा।
कहै कबीर सुनो भाई साधो 
जाय लिङ्गोटी झारि के बन्दा॥ ३॥
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बहुरि नहिं

बहुरि नहिं आवना या देस॥ टेक॥
जो जो ग बहुरि नहि आ  पठवत नाहिं सॅंस॥ १॥
सुर नर मुनि अरु पीर औलिया  देवी देव गनेस॥ २॥
धरि धरि जनम सबै भरमे हैं ब्रह्मा विष्णु महेस॥ ३॥
जोगी जङ्गम औ संन्यासी  दीगंबर दरवेस॥ ४॥
चुंडित  मुंडित पंडित लो  सरग रसातल सेस॥ ५॥
ज्ञानी  गुनी  चतुर अरु कविता  राजा रंक नरेस॥ ६॥
को राम को रहिम बखानै  को कहै आदेस॥ ७॥
नाना भेष बनाय सबै मिलि ढूंढि फिरें चहुॅं देस॥ ८॥
कहै कबीर अंत ना पैहो  बिन सतगुरु उपदेश॥ ९॥
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मन लाग्यो मेरो यार

मन लाग्यो मेरो यार फ़कीरी में॥
जो सुख पाऊँ राम भजन में
सो सुख नाहिं अमीरी में
मन लाग्यो मेरो यार फ़कीरी में॥
भला बुरा सब का सुनलीजै
कर गुजरान गरीबी में
मन लाग्यो मेरो यार फ़कीरी में॥
आखिर यह तन छार मिलेगा
कहाँ फिरत मग़रूरी में
मन लाग्यो मेरो यार फ़कीरी में॥
प्रेम नगर में रहनी हमारी
साहिब मिले सबूरी में
मन लाग्यो मेरो यार फ़कीरी में॥
कहत कबीर सुनो भयी साधो
साहिब मिले सबूरी में
मन लाग्यो मेरो यार फ़कीरी में॥
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भजो रे भैया

भजो रे भैया राम गोविंद हरी।
राम गोविंद हरी भजो रे भैया राम गोविंद हरी॥
जप तप साधन नहिं कछु लागत  खरचत नहिं गठरी॥
संतत संपत सुख के कारन  जासे भूल परी॥
कहत कबीर राम नहीं जा मुख्  ता मुख धूल् भरी॥
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बीत गये दिन

बीत गये दिन भजन बिना रे।
भजन बिना रे  भजन बिना रे॥
बाल अवस्था खेल गवांयो।
जब यौवन तब मान घना रे॥
लाहे कारण मूल गवाँयो।
अजहुं न गयी मन की तृष्णा रे॥
कहत कबीर सुनो भ साधो।
पार उतर गये संत जना रे॥
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नैया पड़ी मंझधार्

नैया पड़ी मंझधार गुरु बिन कैसे लागे पार्॥
साहिब तुम मत भूलियो लाख लो भूलग जाये।
हम से तुमरे और हैं तुम सा हमरा नाहिं।
अंतरयामी एक तुम आतम के आधार।
जो तुम छोड़ो हाथ प्रभुजी कौन उतारे पार॥
गुरु बिन कैसे लागे पार॥
मैं अपराधी जन्म को मन में भरा विकार।
तुम दाता दुख भंजन मेरी करो सम्हार।
अवगुन दास कबीर के बहुत गरीब निवाज़।
जो मैं पूत कपूत हूं कहौं पिता की लाज॥
गुरु बिन कैसे लागे पार॥
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तूने रात गँवायी

तूने रात गँवायी सोय के, दिवस गँवाया खाय के।
हीरा जनम अमोल था, कौड़ी बदले जाय॥
सुमिरन लगन लगाय के मुख से कछु ना बोल रे।
बाहर का पट बंद कर ले अंतर का पट खोल रे।
माला फेरत जुग हुआ, गया ना मन का फेर रे।
गया ना मन का फेर रे।
हाथ का मनका छाँड़ि दे, मन का मनका फेर॥
दुख में सुमिरन सब करें, सुख में करे न कोय रे।
जो सुख में सुमिरन करे तो दुख काहे को होय रे।
सुख में सुमिरन ना किया दुख में करता याद रे।
दुख में करता याद रे।
कहे कबीर उस दास की कौन सुने फ़रियाद॥
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राम बिनु


राम बिनु तन को ताप न जाई।
जल में अगन रही अधिकाई॥
राम बिनु तन को ताप न जाई॥
तुम जलनिधि मैं जलकर मीना।
जल में रहहि जलहि बिनु जीना॥
राम बिनु तन को ताप न जाई॥
तुम पिंजरा मैं सुवना तोरा।
दरसन देहु भाग बड़ मोरा॥
राम बिनु तन को ताप न जाई॥
तुम सद्गुरु मैं प्रीतम चेला।
कहै कबीर राम रमूं अकेला॥
राम बिनु तन को ताप न जाई॥

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