कबीर दास
हंसा चल बसो उस देश
हंसा चल बसो उस देश,जहां के वासी फेर ना मरें।
अगम निगम दो धाम, वास तेरा परे से परै,
उड़े वेदां की भी गम ना, ज्ञान और ध्यान भी उड़े।
जहां बिन धरनी की बाट, पैरां के बिना गमन करे।
उड़े बिन कानां सुन ले,नैनां के बिनां दर्श करे।।
बिन देहि का एक देव,स्वासा के बिना प्राण भरे।
जहां जगमग-२ होए, उजाला दिन रात रहे।।
त्रिवेणी के घाट एक,अधर फर्याव बहे।
जहां सन्त करे अस्नान,दूजा तो कोए न्हा ए ना सके।।
जहां नहाए ते निर्मल होए, तपन तेरे तँ की बुझे।
तेरा आवागमन मिट जाए, चौरासी के फन्द कटें।।
कहते नाथ गुलाब,अम्र पुर वास करे।
गुण गावें भानीनाथ, लग्न सब की लगी ए रहे।।