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Kabir Ke Shabd |
कबीर के शब्द
काहे की भेंट चढाऊँ गुरु थारै, काहें की पूजा लगाऊं जी।
अन्न चढाऊँ दाता अन्न नहीं सुचा, ढोरां ने कर दिया झूठा जी।
फूल चढाऊँ दाता फूल नहीं सुचा, भँवरे ने कर दिया झूठा जी।
जल चढाऊँ दाता जल नहीं सुचा, मछली ने कर दिया झूठा जी।
दूध चढाऊँ दाता दूध नहीं सुचा, बछड़े ने कर दिया झूठा जी।
शीश चढाऊँ दाता शीश नहीं सुचा, माता ने कर दिया झूठा जी।
कह कबीर सुनो भई साधो, भाव की भेंट चढाऊँ जी।।