जो गुरु शब्द पे डटगे, कटगे फन्द चोरासी के।।
निश्चय किया सार आसार।
वृत्ति हरदम रह इकसार।।
तन मन मार भजन में लगगे।
मिलगे घर अविनाशी के।।
गरजे सिँह केशरी वन के, चल दिये चार मुर्खपन के।
सब मन के शंसय भगे लगे फल बारामासी के।।
सब मन के शंसय भगे लगे फल बारामासी के।।
मिला दिया जग पाट्या हुआ जोड़, थकी सब मन कपटी की दौड़।
या वस्तु ठोड़ की ठोड़, भर्म मिटे मथुरा कांसी के।।
या वस्तु ठोड़ की ठोड़, भर्म मिटे मथुरा कांसी के।।
कौन सुनै मैं किसे सुनाऊं, मन मे समझ समझ रहा जाऊं।
इब मैं कौन से मुख से गाउँ, गुण ओंकार सन्यासी के।।
इब मैं कौन से मुख से गाउँ, गुण ओंकार सन्यासी के।।